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Do not let go of the security of your security

Do not let go of the security of your security
Jun 17, 2019 · 13m 52s
अपनी सुरक्षा के चक्कर में न जाने किस राह पर चल पढ़े हम
अब यह सच लगने लगा है कि दुनिया बेहद खतरनाक जगह बन गई है| लेकिन सब कुछ अंधकार और मायूसी से घिरा नहीं है| हमारे पास कुछ महान जीतें और कामयाबियां भी हैं| जैसे-जैसे हम पुरानी व्यवस्था को इतिहास के कूड़ेदान के हवाले कर रहे है, वैसे ही हम दावा करते हैं कि हम नई व्यवस्था की और बढ़ रहे हैं लेकिन जिस प्रकार तीव्र गति हमारा वाहन से नियंत्रण खो देती है उसी प्रकार नई व्यवस्था भी हमारी पहुंच से बाहर नजर आ रही है| दुनिया एक धुंधले, कुछ अस्पष्ट-से और कई मायनों में तो खतरनाक, नए घटनाक्रम की तरफ बढ़ती जा रही है, और सच कठघरे में खड़ा है अपनी आजादी की भीख मांग रहा है| और आजादी बौद्धिकता की बंद गली में फंसकर रह गई है|

एक ओर जबरदस्त महामंथन चल रहा है| अमेरिका जैसे सरीखे देश दुनिया की अगुआई की अपनी भूमिका करना चाहते हैं लेकिन युद्धक सामान के व्यापार को बढाने में लक्ष्य निर्धारित करने वाले ये देश केवल युद्धों की अगवाई में अग्रणी रहना चाहते हैं| दुनिया में अमन शान्ति की बात कोई नहीं चाहता|

अमेरिका तो अपने देश में वह खुद अपने ही व्हाइट हाउस और सुरक्षा प्रतिष्ठान के साथ जंग में लगा है अमेरिका में अफरा-तफरी फैली है| दूसरी और चीन जैसा देश जो दुनिया पर काबिज होने के सपने देखता है, का उभार बेरोकटोक जारी है| अब वह दुनिया को सस्ता माल उपलब्ध करवाने वाली फैक्ट्री भर नहीं, बल्कि विश्व के मंच पर बाहुबली और आक्रामक ताकत बनता जा रहा है और वर्ड सुपर पावर बनने की राह पर है| तिब्बत पर कब्जे के बाद उसी तर्ज पर अब पाकिस्तान में कार्य आरम्भ है|

राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की अगुआई में रूस लगातार शिकार की खोज में घूमता गुर्रा रहा है| अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति चुनाव में उनकी दखलअंदाजी अमेरिका की घरेलू सियासत पर भारी है| विडंबना देखिए, यह उसी राष्ट्रपति की जड़ों को खोखला कर रही है जिसे पुतिन जिताना चाहते थे|

यूरोपीय संघ तार-तार हो रहा है| ब्रेग्जिट और शरणार्थी संकट के बाद यूरोपीय संघ के कई देश एक नए किस्म के राष्ट्रवाद का उभार देख रहे हैं, जिसने हाल के इतिहास में राष्ट्रों के सबसे प्रगतिशील संघ की बुनियादें हिला दी हैं|

यह असल में इतिहास के गाल पर एक तमाचा है| पश्चिम एशिया लगातार लपटों से घिरा है| यह मजहबी उग्रवाद और बर्बर लड़ाइयों से जार-जार है जिनका कोई अंत दिखाई नहीं देता| यह दो महाशक्तियों के खूनी खेल का मैदान बना हुआ है| उधर, अफगान जंग जारी है जहां अमेरिकी मौजूदगी का 17वां साल पूरा हो रहा है| यहां वह एक ऐसी जंग लड़ रहा है जिसे न तो वह जीत सकता है और न ही हारना गवारा कर सकता है|

एक और जहाँ वह अफगानिस्तान को तनावमुक्त करवाने के लिए दुनिया को सब्जबाग दिखा रहा है वहीँ अन्दर ही अन्दर उसके विरोधी देशों को भी युद्धक सामान की मदद मुहैया करवा रहा है | जिससे एटमी अस्थिरता फिर आ खड़ी हुई है| नेता इस तरह बर्ताव कर रहे हैं जैसे लड़के खिलौनों से खेलते हैं| पर ये खतरनाक खिलौने हैं| अमेरिकी राष्ट्रपति ने तो यहां तक दावा किया है कि उनका एटमी बटन किम जोंग के बटन से कहीं बड़ा है|

इधर पड़ोस में पाकिस्तान हमे एटमी हौवा दिखा रहा है और नियंत्रण रेखा लगातार गोलाबारी के साथ अनियंत्रित रेखा में तब्दील हो गई है| सीमा-पार दहशतगर्दी जस की तस है|

मानो खुद विनाश पर आमादा मानवता जलवायु परिवर्तन की चेतावनियों को एक बार फिर नजरअंदाज कर रही है| ऐसा लग रहा है कि यह दुनिया पृथ्वी को नहीं बचा सकती|

टेक्नोलॉजी का सुपरफास्ट सफर जारी है और अब यह चौथी औद्योगिक क्रांति को अंजाम दे रही है| यह हमारी दुनिया को बेहतर जगह बना रही है, इनसानों को ज्यादा सेहतमंद, ज्यादा उत्पादक और उम्मीद है कि ज्यादा खुश भी बना रही है|

मैं मानता हूं कि इस महामंथन ने पांच विरोधाभास भी हमारे सामने उछाले हैं जिनसे आगामी वर्षों में हमें निबटना होगा| हम उनसे कैसे निबटते हैं, इसी से 21वीं सदी की इबारत लिखी जाएगी|

पहला सबसे खतरनाक विरोधाभास है आपस में बेइंतिहा जुड़ी हुई भूमंडलीकृत दुनिया में राष्ट्रवाद की वापसी| संरक्षणवादी ताकतें सिर उठा रही हैं| एक के बाद एक देश व्यापार, लोगों की आवाजाही, यहां तक कि विचारों की राह में रोड़े अटका रहे हैं|

हमें एक करने वाली ताकतों के बनिस्बत अलग करने वाली ताकतें ज्यादा मजबूत हो रही हैं| हमारे जमाने के एक अद्भुत विचारक युवल नोआ हरारी ने 21वीं सदी के राष्ट्रवाद पर अपने विचार हमारे सामने रखे|

दूसरा विरोधाभास लोकतंत्र पर मंडराते खतरे हैं| लोकतंत्र आजादियों का सुंदर पालना है| मगर इन आजादियों को कट्टरतावाद, बहुसंख्यकवाद और व्यापक असहिष्णुता के जरिए कमजोर किया जा रहा है| यह अनुदार और एक किस्म के लुंपेन लोकतंत्रों का उभार है|

अब बात करते हैं भारत की| देश की जनता ने विकास की राह में प्रधानमंत्री के रूप में फिर से श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है| लेकिन कुछ लोग इसे धर्म और जाति से जोड़ कर देखना चाहते हैं| कुछ धार्मिक उन्माद में फंसे या शिकार लोग इसे मानवता की राह से हटा कर एक धर्म या जातिविशेष से जोड़ कर देखना चाहते हैं| और यही चुनौती प्रधान मंत्री के लिए सबसे अहम् होगी| उनका यह नारा कि सबका विकास, सबका विश्वास ऐसे कारणों से टूटता नजर आता है| सदियों से पल-पल मरते लोगों में बदले की भावना का जन्म देश के विकास में रोड़ा बन सकता है| देश को निरंतर विकास की ओर अग्रसर करने की इच्छा रखने वाले नेताओं द्वारा ऐसे लोगों को दरकिनार करने की आवश्यकता है|

खामोशी और निष्क्रियता से कट्टरता को और ताकत मिलती है| जैसा कि पिछले पांच वर्ष में दुनिया ने स्वयं देखा, कांग्रेस व उसके सहयोगियों के सत्ता से बाहर होते ही विवेकवान बहस की जगह संसद में शोर-शराबा और गाली-गलौच के अतिरिक्त कुछ नहीं हुआ| सत्तापक्ष को नीचा दिखाने की चाह में विपक्ष स्वयं अपने आचरण से नीचे गिरता चला गया|

यहाँ तक कि इंसाफ के सबसे ऊंचे मंदिर सुप्रीम कोर्ट में जज खुलेआम एक-दूसरे से झगड़ रहे हैं| सियासतदां अफसरशाहों और कानून लागू करने वाले अफसरों के साथ मारपीट और हमले हो रहे हैं| लोकतंत्र के बदलते परिवेश में खुद को राजा समझने वाले, पद पर निरंतर बने रहने की चाह रखने वाले भ्रष्ट अधिकारी एवं जज अपना वर्चस्व बनाए रखने के प्रयास में जहाँ आतंकियों के लिए दिन में ही नहीं रात में भी सेवा प्रदान करने से गुरेज नहीं करते वहीँ भारतीय जनता के सपनों को साकार करने वाले मुद्दों को लटकाने की फिराक में रहते हैं| जिस कारण सरकार के साथ-साथ न्याय प्रबंधन का प्रबंध करने वालों का बदलाव एवं प्रशासनिक बदलाव भी अनिवार्य है| एक ही परिवार के प्रति अपनी निष्ठा रखने वाले लोगों को उनके पदों से च्यूत करने की आवश्यकता है| नहीं तो यही अफसरशाही वर्तमान जनता के कार्यों में रुकावट सिद्ध हो सकती है|

किसी समय में इरान तक फैला हिंदुस्तान सिमट कर भारत के चंद राज्यों तक सिमित हो गया है| अल्पसंख्यक बहुलता को नकार अपना वर्चस्व बनाने के प्रयास में हैं| मुग़ल शासन की धरोहरों को बचाने के चक्कर में सनातन सस्कृति का खात्मा किया जा रहा है| और अपनी सत्ता के नशे में चूर पूर्व शासक इससे बेखबर देश की जड़ें खोने में लगे हैं| बाबर जैसे समुद्री लुटेरे को अपना मसीहा मानने वाले हिन्दूओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं| इसके लिए चाहे इन्हें नक्सलवाद या आतंकवाद का सहारा ही क्यों न लेना पड़े, लेकिन अब उम्मीद है कि हिंदुओं से भी पूछा जाएगा| कुछ मिडियाकर्मी इसे अल्पसंख्यक पर आघात सिद्ध करने में लगे हैं| उन्हें यह नहीं नजर आता कि भारत का सनातन धर्म खतरे में रहा, हिन्दू विरासतें मिटती जा रही है उस समय खतरा नजर नहीं आया| लेकिन अब जब सब पहले के समान होने की चाह मन में संजोये मूल भारतीय भारत निर्माण की और कदम बढ़ा रहा है तो उन्हें एक वर्ग खतरे में नजर आने लगा है| एक ऐसा वर्ग जिसने कभी आर्थिक, सामजिक उन्नति नहीं की| केवल जनसँख्या बढा कर देश पर आघात करने का ही कार्य किया है| एक समय था जब यही वर्ग कारीगर के रूप में दुनिया में विख्यात था लेकिन आज के समय में यही वर्ग अलगाववाद, भटकाव और आतंकवादी के नाम से जाना जाने लगा है|

इस प्रकार के भ्रम को तोड़ कर, नक्सलवाद और आतंकवाद को त्याग कर दुबारा देश की तरक्की में साथ आने वालों का अब स्वागत हो रहा है| देश को मिटाने वाले हमले करने वाले कारणों को ख़त्म किया जा रहा है| देश में आर्थिक वृद्धि लाने के लिए स्वावलंबन व रोजगार सम्बन्धी योजनाएं चलाई जा रही है| देश के विकास में योगदान देने के लिए पहल इन्हें ही करनी होगी| यदि ये अपने पूर्व ढर्रे पर सोचते रहे तो ये पाकिस्तान की तरह दुनियां में अलग-थलग हो जायेंगे| इनको सोचना चाहिए आतंकवाद से अमीरी नहीं आ सकती, उसके लिए नियंत्रित व्यापार की आवश्यकता है| भटकाव छोड़ कर सौहार्द की आवश्यकता है| अब जबकि इसी बदलाव के साथ भारत विकसित देशों में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए अग्रणी की भूमिका निभा रहा है वहीँ अपनी गुंडागर्दी की सोच को विराम देकर अन्य नेताओं व प्रधान सेवकों को भी इसी कड़ी में जुड़ कर अपना योगदान देना होगा| अराजकता फैला कर, डर फैला कर सत्ता हासिल करने बारे सोचने वालों को बदलना होगा| अब जनता भ्रम में जीना नहीं चाहती| अब सभी जानते हैं देश का विकास ही सबका विकास है, देश का कल्याण ही सबका कल्याण है| सभी जन एक समान है तो सबके लिए सभी सुविधाएं भी समान है| किसी को जाति विशेष के कारण या धर्म विशेष के कारण विशेष अधिकार प्राप्त नही होंगे|
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Author Tatshri
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