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Everyone in the picture of changing India

Everyone in the picture of changing India
Jun 16, 2019 · 6m 45s
बदलते भारत की तस्वीर में सब जन समान
एक दौर था जब स्वेच्छा से या मजबूरी से जनता राजाओं के समक्ष मुजरा करती थी| दरबार में प्रस्तुत प्रत्येक व्यक्ति नजर और सर झुका कर अदब से खड़ा रहता था और पूछे जाने पर ही कम शब्दों में अपनी बात कहता था| यहाँ तक कि जनता में से भी यही कोई आवाज आती तो उसे बगावत अर्थात राजद्रोह के लिए दण्डित किया जाता था| दौर बदला तो जनता की सोच भी बदली| राजतंत्र ख़त्म हुआ और लोकतंत्र आ आरम्भ हुआ| इस बदलते दौर में जनता ने तो अपने अधिकारों को समझ लिया है लेकिन जनता द्वारा चुने जाने के बावजूद कुछ नेता खुद को स्वयंभू कहने से नहीं चूकते| वे आज भी राजाओ-महाराजाओं के समान जनता को नीच समझने की गलती करते हैं| चाहे कांग्रेस के भावी युवराज हों या बंगला देश से आकर पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी, सब खुद को जनता से भिन्न, जनता से श्रेष्ठ समझने की मिथ्या भूल कर रहे हैं| और यही कारण है कि अपनी सत्ता खो देने का डर ऐसे नेताओं में व्याप्त हो चला है| अहंकार में डूबे ये नेता अपनी सत्ता बचाने के लिए देश को राज्य को जाति/धर्म के युद्ध में झोंक कर अपनी राजनीति चमकाने में लगे है| हां! कुछ पिछड़े क्षेत्रों में जहाँ साक्षरता न के बराबर है वहां जनता को गुमराह कर चंद वोट एकत्रित किए जा सकते हैं| लेकिन यह सोचना कि उन्हें वोट देना जनता की मजबूरी है और कभी भी जनता को खरीद कर उस पर काबिज हुआ जा सकता है, यह इनकी सबसे बड़ी भूल है| और इसी भूल का नतीजा है बंगाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इशारे पर कुछ असामाजिक तत्त्वों द्वारा लोकतंत्र की हत्या का प्रयास करना| राज्य में दंगे भड़काना| एक पिछड़े, निरक्षर, अल्पबुद्धि वर्ग विशेष को साथ लेकर अन्य सभी समुदायों को दरकिनार करते हुए अपनी प्रभुता का प्रदर्शन करना| जो कि दुनिया भर में निंदनीय हो रहा है| पूरी दुनिया में अपनी छवि खराब चुकी इंदिरा कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस अब सत्ता के हाशिये पर नजर आ रही है| जहाँ कांग्रेस का गढ़ कहलाने वाले अभेद किले उत्तरप्रदेश के अमेठी में शासकीय परिवर्तन आया है, वहीँ दंभ से भरी ममता के किले भी ढेर होते नजर आ रहे हैं| जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने वाली बंगाल की मुख्यमंत्री तानाशाही दिखाते हुए जनता से दूर होती नजर आ रही है| गौरतलब है कि एक वर्ग समुदाय के लोगों ने हाल ही में अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डाक्टरों पर हमला कर पांच डाक्टरों को घायल कर दिया था| लेकिन पुलिस एवं मुख्यमंत्री द्वारा हमलावरों के खिलाफ कार्यवाही करना तो दूर, उल्टा डाक्टरों को दोष देकर, अपने गुंडा गैंग को बचाने के पक्ष में नजर आना, सत्तापक्ष पर अब भारी पड़ने लगा है| क्योंकि सकते में आए डाक्टरों के अनिश्चित हड़ताल पर जाने से समूचे बंगाल पर असर पड़ने लगा है| कथित दीदी का सिहासन अब डोलने लगा है| क्योंकि भारतवर्ष के डाक्टर बंगाल के डाक्टरों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं| देश भर से बंगाल की मुख्यमंत्री के खिलाफ रोषपूर्ण यात्राओं का दौर आरम्भ हो चूका है| लेकिन कथित दीदी का अहंकार उसे झुकने नहीं दे रहा है, दीदी को आज भी यही लगता है कि वह अपनी गुंडागर्दी के दम पर कुछ हत्याएं करवा कर सभी को चुप करवा सकती है|
इस मामले में आधे से अधिक जनता बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रही है लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार के खिलाफ आपातकाल घोषित करना नैतिक और राजनैतिक दृष्टि से सही नहीं कहलाएगा| यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा मूकदर्शक बन हालात को संभालना और शान्ति बहाल करने के लिए प्रयास करना जिम्मेदारी एवं मजबूरी बन गयी है| दूसरी और अपने कथनों के चलते बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उर्फ़ कथित दीदी की जो जगहसाई हो रही है, वह कभी न धुलने वाला, इतिहास के पन्नो में दर्ज होने वाला एक मुख्यमंत्री के चरित्र पर पड़ा दाग है|
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Author Tatshri
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