19 DEC 2017 · आज के इस बदचलन दुनियाँ मॆं लोगों की जुबान बनकर रात - रात भर हिन्दी कवि - सम्मेलनों मॆं पढ़ना , उर्दू मुशायरों मॆं गज़ल - शायरी को नौजवानों के दिलों मॆं उतारना , उनकी धड़कने सुनकर उन्ही के जुबां की तलवार पर खुद को कुर्बान कर देना हमने अपने बुजुर्गों सॆ सिखा है !! कुछ लोग हमारे ब्लोक पर जाकर ये लिखे की आप जो गुनगुनाते हैं उसे आराधन के रूप मॆं कोशिश करें !! मैं कोशिश करूँगा और अपने आप सॆ ये उम्मीद करेंगे की आपकी बातों पर खड़ा उतर सके !! धन्यवाद !! बहुत - बहुत प्रणाम !! कुमार अशेष !..... !