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Wo Akhiri Yaad I Dhairya Kant Mishra I thisispankaj

Wo Akhiri Yaad I Dhairya Kant Mishra I thisispankaj
Jan 27, 2017 · 5m 1s
तुम्हारी जुल्फ का एक टुकड़ा मेरे कोट के एक बटन में कल लिपट कर मेरे पास आ गया था , मेरी नज़र जब उसकी सिसकियों पर पड़ी तो मैंने हलके हांथो से उसको निकालने की एक नाकमयाब कोशिश की , लेकिन उसकी जिद्द की आगे मेरी नहीं चली | शायद बहुत सर्द सी थी , मैंने कई बार कहा है की इस कदर अपनी जुल्फों को मत भिगोया करो , कुछ जुल्फ थोड़े सेंसिटिव होते है हमारी तरह और उनको कोल्ड की शिकायत हो जाती है अक्सर | कुछ देर बाद जब वो आसपास पड़े धागों को ओढ़ कर सो गयी तो मैंने एक और कोशिश की उसको वहाँ से निकालने की, धीरे धीरे मैंने बटन की रेकी करनी शुरू कर दी , लेकिन रास्ता इतना सूक्ष्म था की वहाँ तक पहुंचना मुश्किल लग रहा था | मैंने तभी घर में पड़ी सुई को नींद से जगाया और अपनी मुश्किल उसके कानो में बड़े आराम से कह दी | थोड़ा वक़्त लगा , लेकिन उसने मदद क़े लिए हामी भर दी | फिर सुई हलके से बटन क़े सूक्ष्म छिद्र क़े अंदर से उसके सिरहाने तक पहुंची और उसको अपनी गोद में उठा कर मेरे हथेली पर सुला दिया | गौर से जब मैंने उसकी तरफ देखा, वो सर्दी क़े मारे नींद में छींक रही थी , मैंने घर में पड़े ड्रायर से उसको धीरे धीरे सुखाना शुरू कर दिया | लेकिन अचानक ड्रायर की आवाज़ से वो उठ खड़ी हुई और गुस्से से मेरी तरफ देखने लगी | नींद पूरी नहीं हुई थी , आँखे उसकी लाल सी थी , तभी किसी कमबख्त ने पंखा चला दिया और फिर उसने मेरा साथ वही छोड़ दिया | वो आखरी याद जो मैं संजोना चाहता था , वो किसी कोने में चुप चाप जाकर छुप गयी थी | मैंने कोशिश की , पर शायद बीच नींद से जगाने का मेरा फैसला गलत साबित हुआ | अगली बार जब तुम मिलोगी तो अपने बालों को फिर से भिंगो लेना , शायद मुझे प्रायश्चित का मौका मिल जाये | - Dhairya Kant Mishra
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Author Pankaj Kumar
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